लेखनी कविता - गुड्डी परी, मुन्ना राजकुमार - बालस्वरूप राही
गुड्डी परी, मुन्ना राजकुमार / बालस्वरूप राही
मैं तो बिल्कुल नहीं खेलता नाटक मम्मी जो इस बार।
गुड्डी को तो परी बनाया, मुझे बनाया राजकुमार।
इस तरह के ठाट-बाट तो देखो
कैसी शान निराली है।
आँखों में काजल, गालों पर
कितनी प्यारी लाली है।
मेरे मुँह पर थोप दिया है बस सूखा पौडर बेकार।
सातों रंग सजे पंखों में
कपड़ों में उजियाली है।
ठुमक-ठुमक चलती यह जैसे
बस उड़ने ही वाली है।
मेरी अचकन ढीली-ढाली, तंग पजामा चुढ़ीदार।
इस मुरली को मुरली मिली सुरीली
होकर मगन बजाती है।
इस को गीत सिखाए सब ने
झूम-झूम कर गाती है।
मुझे मिला लकड़ी का घोडा या यह गत्ते की तलवार।
मुझ को डाँट-डपट करनी है,
यह हंस-हंस कर बोलेगी।
अपनी प्यार भरी बातों से
यह मिसरी- सी घोलेगी।
मेरा काम लड़ाई करना और इसे करना उपकार।
मैं तो बिल्कुल नहीं खेलता नाटक मम्मी जी इस बार।